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ज्वार की खेती में बीजोपचार और इसमें लगने वाले कीट व रोगों की रोकथाम से जुड़ी जानकारी

ज्वार की खेती में बीजोपचार और इसमें लगने वाले कीट व रोगों की रोकथाम से जुड़ी जानकारी

रबी की फसलों की कटाई प्रबंधन का कार्य कर किसान भाई अब गर्मियों में अपने पशुओं के चारे के लिए ज्वार की बुवाई की तैयारी में हैं। 

अब ऐसे में आपकी जानकारी के लिए बतादें कि बेहतर फसल उत्पादन के लिए सही बीज मात्रा के साथ सही दूरी पर बुआई करना बहुत जरूरी होता है। 

बीज की मात्रा उसके आकार, अंकुरण प्रतिशत, बुवाई का तरीका और समय, बुआई के समय जमीन पर मौजूद नमी की मात्रा पर निर्भर करती है। 

बतादें, कि एक हेक्टेयर भूमि पर ज्वार की बुवाई के लिए 12 से 15 किलोग्राम बीज की आवश्यकता पड़ती है। लेकिन, हरे चारे के रूप में बुवाई के लिए 20 से 30 किलोग्राम बीजों की आवश्यकता पड़ती है। 

ज्वार के बीजों की बुवाई से पूर्व बीजों को उपचारित करके बोना चाहिए। बीजोपचार के लिए कार्बण्डाजिम (बॉविस्टीन) 2 ग्राम और एप्रोन 35 एस डी 6 ग्राम कवकनाशक दवाई प्रति किलो ग्राम बीज की दर से बीजोपचार करने से फसल पर लगने वाले रोगों को काफी हद तक कम किया जा सकता है। 

इसके अलावा बीज को जैविक खाद एजोस्पाइरीलम व पी एस बी से भी उपचारित करने से 15 से 20 फीसद अधिक उपज प्राप्त की जा सकती है।

इस प्रकार ज्वार के बीजों की बुवाई करने से मिलेगी अच्छी उपज ?

ज्वार के बीजों की बुवाई ड्रिल और छिड़काव दोनों तरीकों से की जाती है। बुआई के लिए कतार के कतार का फासला 45 सेंटीमीटर रखें और बीज को 4 से 5 सेंटीमीटर तक गहरा बोयें। 

अगर बीज ज्यादा गहराई पर बोया गया हो, तो बीज का जमाव सही तरीके से नहीं होता है। क्योंकि, जमीन की उपरी परत सूखने पर काफी सख्त हो जाती है। कतार में बुआई देशी हल के पीछे कुडो में या सीडड्रिल के जरिए की जा सकती है।

सीडड्रिल (Seed drill) के माध्यम से बुवाई करना सबसे अच्छा रहता है, क्योंकि इससे बीज समान दूरी पर एवं समान गहराई पर पड़ता है। ज्वार का बीज बुआई के 5 से 6 दिन उपरांत अंकुरित हो जाता है। 

छिड़काव विधि से रोपाई के समय पहले से एकसार तैयार खेत में इसके बीजों को छिड़क कर रोटावेटर की मदद से खेत की हल्की जुताई कर लें। जुताई हलों के पीछे हल्का पाटा लगाकर करें। इससे ज्वार के बीज मृदा में अन्दर ही दब जाते हैं। जिससे बीजों का अंकुरण भी काफी अच्छे से होता है।  

ज्वार की फसल में खरपतवार नियंत्रण कैसे करें ?

यदि ज्वार की खेती हरे चारे के तोर पर की गई है, तो इसके पौधों को खरपतवार नियंत्रण की आवश्यकता नहीं पड़ती। हालाँकि, अच्छी उपज पाने के लिए इसके पौधों में खरपतवार नियंत्रण करना चाहिए। 

ज्वार की खेती में खरपतवार नियंत्रण प्राकृतिक और रासायनिक दोनों ही ढ़ंग से किया जाता है। रासायनिक तरीके से खरपतवार नियंत्रण के लिए इसके बीजों की रोपाई के तुरंत बाद एट्राजिन की उचित मात्रा का स्प्रे कर देना चाहिए। 

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वहीं, प्राकृतिक ढ़ंग से खरपतवार नियंत्रण के लिए इसके बीजों की रोपाई के 20 से 25 दिन पश्चात एक बार पौधों की गुड़ाई कर देनी चाहिए। 

ज्वार की कटाई कब की जाती है ?

ज्वार की फसल बुवाई के पश्चात 90 से 120 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। कटाई के उपरांत फसल से इसके पके हुए भुट्टे को काटकर दाने के लिए अलग निकाल लिया जाता है। ज्वार की खेती से औसत उत्पादन आठ से 10 क्विंटल प्रति एकड़ हो जाता है। 

ज्वार की उन्नत किस्में और वैज्ञानिक विधि से उन्नत खेती से अच्छी फसल में 15 से 20 क्विंटल प्रति एकड़ दाने की उपज हो सकती है। बतादें, कि दाना निकाल लेने के उपरांत करीब 100 से 150 क्विंटल प्रति एकड़ सूखा पौैष्टिक चारा भी उत्पादित होता है। 

ज्वार के दानों का बाजार भाव ढाई हजार रूपए प्रति क्विंटल तक होता है। इससे किसान भाई को ज्वार की फसल से 60 हजार रूपये तक की आमदनी प्रति एकड़ खेत से हो सकती है। साथ ही, पशुओं के लिए चारे की बेहतरीन व्यवस्था भी हो जाती है। 

ज्वार की फसल को प्रभावित करने वाले प्रमुख रोग और कीट व रोकथाम 

ज्वार की फसल में कई तरह के कीट और रोग होने की संभावना रहती है। समय रहते अगर ध्यान नहीं दिया गया तो इनके प्रकोप से फसलों की पैदावार औसत से कम हो सकती है। ज्वार की फसल में होने वाले प्रमुख रोग निम्नलिखित हैं।

तना छेदक मक्खी : इन मक्खियों का आकार घरेलू मक्खियों की अपेक्षा में काफी बड़ा होता है। यह पत्तियों के नीचे अंडा देती हैं। इन अंडों में से निकलने वाली इल्लियां तनों में छेद करके उसे अंदर से खाकर खोखला बना देती हैं। 

इससे पौधे सूखने लगते हैं। इससे बचने के लिए बुवाई से पूर्व प्रति एकड़ भूमि में 4 से 6 किलोग्राम फोरेट 10% प्रतिशत कीट नाशक का उपयोग करें।

ज्वार का भूरा फफूंद : इसे ग्रे मोल्ड भी कहा जाता है। यह रोग ज्वार की संकर किस्मों और शीघ्र पकने वाली किस्मों में ज्यादा पाया जाता है। इस रोग के प्रारम्भ में बालियों पर सफेद रंग की फफूंद नजर आने लगती है। इससे बचाव के लिए प्रति एकड़ भूमि में 800 ग्राम मैन्कोजेब का छिड़काव करें।

सूत्रकृमि : इससे ग्रसित पौधों की पत्तियां पीली पड़ने लगती हैं। इसके साथ ही जड़ में गांठें बनने लगती हैं और पौधों का विकास बाधित हो जाता है। 

रोग बढ़ने पर पौधे सूखने लगते हैं। इस रोग से बचाव के लिए गर्मी के मौसम में गहरी जुताई करें। प्रति किलोग्राम बीज को 120 ग्राम कार्बोसल्फान 25% प्रतिशत से उपचारित करें।

ज्वार का माइट : यह पत्तियों की निचली सतह पर जाल बनाते हैं और पत्तियों का रस चूस कर पौधों को नुकसान पहुंचाते हैं। इससे ग्रसित पत्तियां लाल रंग की हो कर सूखने लगती हैं। इससे बचने के लिए प्रति एकड़ जमीन में 400 मिलीग्राम डाइमेथोएट 30 ई.सी. का स्प्रे करें।

अप्रैल माह में करें मूंग की खेती बेहतर उपज के साथ होगा खूब मुनाफा

अप्रैल माह में करें मूंग की खेती बेहतर उपज के साथ होगा खूब मुनाफा

रबी फसलों की कटाई अब लगभग पूरी हो चुकी है। इसके साथ ही किसान अब अगली फसलों की तैयारी में जुट गए हैं। इन दिनों देश के कई हिस्सों में किसान मूंग की खेती करने की तैयारी कर रहे हैं। 

हालांकि, कई बार किसानों को ये शिकायत रहती है की उन्हें मनचाही पैदावार नहीं मिली। जिस वजह से उन्हें अच्छा मुनाफा नहीं हो पाता है। 

आज की इस खबर में हम आपको कृषि सलाहकारों द्वारा बताए गए कुछ खास तरीके बताएंगे, जिससे आपको अच्छी पैदावार मिल सकती है। 

खेत को तैयार करना बेहद जरूरी

किसी भी चीज की खेती करने से पहले खेत को तैयार करना बेहद जरूरी है। कृषि सलाहकारों की मानें तो मूंग की बेहतर पैदावार लेने के लिए सबसे पहले खेतों की गहरी जुताई कर मिट्टी को पलट देना चाहिए। 

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फिर दो बार कल्टीवेटर से खेत की मिट्टी को ढीला करें। फसलों को दीमक से बचाने के लिए अंतिम जुताई से पहले 1.5% क्विनाफॉस पाउडर 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में फैलाएं, फिर जुताई करके मिट्टी में मिला दें। 

मूंग के सही बीज का चयन करना बेहद जरूरी 

मूंग की खेती में सही बीजों का चुनाव काफी महत्वपूर्ण है। कृषि सलाहकारों की मानें तो किसानों को गर्मी के महीनों के दौरान संकर बीजों का चयन करना चाहिए। 

उत्पादकता के अलावा, संकर बीजों में उच्च तापमान सहनशीलता भी होती है। अगर आप सही बीजों का चयन करते हैं तो आपकी पैदावार भी अच्छी होगी, जिससे आप अच्छा मुनाफा कमा पाएंगे। 

किसान भाई उचित बीजों का उपचार करें 

ग्रीष्मकालीन मूंग की बुवाई में 20-25 किलोग्राम प्रति एकड़ मूंग लेना चाहिए, जिसे 3 ग्राम थायरम फफूंदनाशक दवा से प्रति किलो बीज के हिसाब से उपचारित करने से बीज और भूमि जन्य बीमारियों से फसल सुरक्षित रहती है। 

इसके अलावा आप इफको की सागरिका, नैनो डीएपी से भी बीज उपचारित करा सकते हैं। इसके अलावा 600 ग्राम राइज़ोबियम कल्चर को किसी पात्र में लेकर 1 लीटर पानी में डाल दें। साथ ही 250 ग्राम गुड़ के साथ मिश्रित कर गर्म कर लें, जिसके ठंडा होने पर बीज को उपचारित कर छांव में सुखा लें और बुवाई कर दें। 

किसान भाई सही उर्वरकों का प्रयोग करें 

अगर संभव हो तो पहले मिट्टी का परीक्षण करें, ताकि आप आवश्यक उर्वरक और खाद डाल सकें। वैसे तो रबी के मौसम में मिट्टी में डाला गया उर्वरक कुछ हद तक मूंग की फसल के लिए कारगर होता है। 

लेकिन, इसके बावजूद खेतों में कम से कम 5 से 10 टन गोबर या कम्पोस्ट जरूर डालें। इससे भविष्य की फसलों को भी फायदा होगा। 

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इसके अलावा, मूंग की खेती के दौरान 20 किलोग्राम नाइट्रोजन, 40 किलोग्राम फास्फोरस, 20 किलोग्राम पोटेशियम, 25 किलोग्राम सल्फर और 5 किलोग्राम जस्ता का भी इस्तेमाल करें। 

मूंग की सिंचाई का सही समय

दरअसल, ग्रीष्मकालीन मूंग को ज्यादा पानी की जरूरत नहीं होती है। मूंग की फसल 25 से 40 डिग्री तक तापमान तक सहन कर सकती है। 

हालांकि, यदि फूल आने की अवधि के दौरान सूखे की स्थिति में इसकी सिंचाई की जाए, तो उपज में काफी वृद्धि होगी। 

अप्रैल माह में बोई जाने वाली जिमीकंद की खेती से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी

अप्रैल माह में बोई जाने वाली जिमीकंद की खेती से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी

भारत एक कृषि प्रधान देश है। यहां की आधे से ज्यादा आबादी आज भी खेती-किसानी पर आश्रित है। यही वजह है की यहां बड़े पैमाने पर खेती की जाती है। 

जहां पहले किसान पारंपरिक फसलों को अधिक अहमियत देते थे। वहीं, अब किसान धीरे-धीरे ज्यादा मुनाफा देने वाली फसलों की खेती कर रहे हैं। जिमीकंद इसी प्रकार की फसलों में से एक है।

जिमीकंद को उत्तर भारत के बहुत से राज्यों में ओल भी कहा जाता है। अप्रैल महीने की शुरुआत में किसान इस फसल की खेती कर पांच गुना मुनाफा कमा सकते हैं। 

कृषि वैज्ञानिकों का जिमीकंद को लेकर क्या कहना है 

कृषि वैज्ञानिक प्रमोद कुमार के अनुसार, जिमीकंद की खेती से किसान काफी शानदार कमाई कर सकते हैं। जिमीकंद की खेती शुरू करने का सबसे अच्छा वक्त अप्रैल है। उन्होंने बताया कि ओल की खेती के लिए सिंचाई व्यवस्था बेहतर होनी चाहिए। 

इसके अतिरिक्त इसमें ऑर्गेनिक खाद्य का उपयोग करना चाहिए, जिससे फसल अत्यंत अच्छी होती है। क्योंकि, बरसात का मौसम जुलाई में चालू होता है। इस वजह से किसानों को वक्त रहते सिंचाई व्यवस्था कर लेनी चाहिए। 

उन्होंने बताया कि जिमीकंद की फसल 7 से 8 महीने में पककर तैयार हो जाती है। अप्रैल में बुवाई के पश्चात नवंबर में फसल कटाई के लिए तैयार हो जाती है। उन्होंने बताया कि एक कट्ठे में जिमीकंद की खेती कर किसान 20 से 25 हजार रुपए तक आसानी से कमा सकते हैं। 

जिमीकंद की खेती के लिए उपयुक्त मृदा का चयन महत्वपूर्ण 

प्रमोद कुमार ने बताया कि इसकी खेती के लिए सबसे पहले उपयुक्त मृदा का चयन करना अत्यंत आवश्यक है। किसानों के लिए जिमीकंद की खेती के लिए रेतीली दोमट प्रकार की मृदा की तलाश करनी चाहिए, जिसमें जल निकासी की अच्छी व्यवस्था हो और जिसमें कार्बनिक पदार्थ हों। 

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एक बार जब उपयुक्त मिट्टी का चयन हो जाए, तो दो फीट की दूरी पर और 40 मीटर के गड्ढों में जिमीकंद की बुवाई करें। इसके लिए दो केजी के जिमीकंद को चार भागों में काटकर एक एक गड्ढे में मिट्टी से एक इंच नीचे लगा सकते है।

किसान भाई इस बात का रखें विशेष ध्यान

इसमें किसानों को इस बात का खास ध्यान रखना जरूरी है, कि कटे हुए ओल में गढ्ढा हो। ये ओल देसी ओल की तुलना में पांच गुना बड़ा होता है। देसी ओल जहां तीन वर्ष में पककर तैयार होता है। 

वहीं, ये प्रभेद के ओल आठ महीने में तैयार हो जाते हैं। इसकी खेती के लिए एनपीके (नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, और पोटैशियम) का अनुपात 100:60:80 का होना चाहिए। इसके साथ सप्ताह में एक बार पटवन करना जरूरी है, जिसके बाद 20 से 23 दिन में इसके पौधे निकलने लगते हैं।

जिमीकंद कितने समय में तैयार हो जाता है 

उन्होंने कहा कि यदि आप 140 क्विंटल जिमीकंद लगाएंगे तो आठ महीने में ये 500 क्विंटल हो जाएगा। इस प्रकार के जिमीकंद को उगाना काफी आसान है। क्योंकि इसे कीड़े या जानवरों से कोई हानि नहीं पहुंचती है। 

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जिमीकंद का एक 500 ग्राम का तुकड़ा आठ महीने में 2 से 2.5 किलो तक हो जाता है। उन्होंने बताया कि बजार में इसको बड़ी आसानी से 40 रुपये प्रति किलो में बेचा जा सकता है। अब इस हिसाब से किसान इससे काफी अच्छी आय कर सकते हैं।

खरीफ के सीजन में यह फसलें देंगी आप को कम लागत में अधिक फायदा, जानिए इनसे जुड़ी बातें

खरीफ के सीजन में यह फसलें देंगी आप को कम लागत में अधिक फायदा, जानिए इनसे जुड़ी बातें

हम जानते हैं कि खरीफ की फसल बोने का समय चल रहा है। इस मौसम में किसान खरीफ की विभिन्न फसलों से काफी लाभ कमाते हैं और बारिश के मौसम में किसान सिंचाई की लागत से बच सकते हैं। जून का आधा महीना बीत चुका है और जुलाई आने वाला है। ऐसे में यह समय खरीफ की फसलें बोने के लिए उपयुक्त माना जाता है। किसान इस समय में औषधीय पौधों की खेती करके भी अधिक लाभ कमा सकते हैं। क्योंकि यह मौसम औषधि पौधों के लिए उपयुक्त माना जाता है। अभी खरीफ की फसलें बोने का समय चल रहा है। इसमें किसान धान, मक्का, कपासबाजरा और सोयाबीन जैसी विभिन्न फसलों की खेती में करते हैं। मानसून आने के साथ ही इन फसलों की रोपाई बुवाई में तेजी आई है। ऐसे में कुछ किसान उपरोक्त खरीफ की फसलें उगा रहे हैं और कुछ किसान इससे हटकर कई औषधीय पौधों की खेती कर रहे हैं। ऐसा करने का किसानों का उद्देश्य केवल कम लागत में अधिक मुनाफा प्राप्त करना है। औषधीय पौधों की खेती करने से किसान को अधिक लाभ मिलता है। वही सरकार के द्वारा किसानों को मदद भी दी जाती है। इस वजह से किसानों का ध्यान औषधीय पौधों की खेती करने की और अग्रसर हो रहा है।

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देश के किसान इस समय मेडिसिनल प्लांट्स की खेती भी कर रहे हैं। इनकी मांग बाजार में अधिक होने के कारण किसानों को इनकी अच्छे दाम मिलते हैं। वहीं किसानों को सरकारी मदद भी मिलती है। इस समय जिन औषधीय पौधों की खेती की जा सकती है, उनमें सतावर, लेमन ग्रास, कौंच, ब्राह्मी और एलोवेरा प्रमुख रूप से हैं।

कौंच की खेती करने से फायदा :-

कौंच एक झाड़ीनुमा पौधा होता है, जो कि मैदानी क्षेत्र में पाया जाता है। इस पौधे की खेती किसान 15 जून से लेकर 15 जुलाई के बीच में कर सकते हैं। 1 एकड़ में कौंच की खेती करने में करीब 50 से 60 हजार रुपए का खर्च आता है जबकि कमाई प्रति एकड़ 2 से 3 लाख रुपए तक होती है। इसकी बुवाई के लिए प्रति एकड़ 6 से 8 किलो बीज की जरूरत होती है।

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ब्राह्मी की खेती की जानकारी :

ब्राह्मी का इस्तेमाल विभिन्न प्रकार की दवाएं बनाने में किया जाता है। यह एक लोकप्रिय औषधीय पौधा है। इसकी खेती करने के लिए बारिश कम समय सबसे उपयुक्त माना जाता है। यह एक ऐसा पौधा है जिसकी डिमांड हाल ही के वर्षों में काफी बढ़ी है। किसान इस वक्त ब्राह्मी के साथ एलोवेरा की खेती भी कर सकते हैं। इसकी खेती जुलाई से लेकर अगस्त के बीच में की जाती है। कई कंपनियां इस पौधे की खेती करने के लिए किसानों को सीधे कॉन्ट्रैक्ट देती हैं।

सतावर की खेती से किसानों को लाभ :

खरीफ के मौसम में किसान सतावर और लेमनग्रास जैसे औषधीय पौधों की खेती कर सकते हैं। दोनों की खेती अलग अलग समय पर की जाती है। लेमनग्रास की खेती के लिए फरवरी से लेकर जुलाई तक का समय उपयुक्त होता है। लेकिन शतावर के लिए अगला पखवाड़ा सबसे उपयुक्त माना जाता है। सतावर की खेती से किसान काफी अधिक फायदा कमाते हैं। वहीं लेमनग्रास की खेती करने से यह फायदा होता है कि इसे एक बार लगाने पर किसान इससे कई साल तक पैदावार प्राप्त कर सकते हैं।
खरीफ फसलों की खेती अब जलभराव वाले क्षेत्रों में भी होगी, कृषि मंत्री ने किसानों को दिया आश्वासन

खरीफ फसलों की खेती अब जलभराव वाले क्षेत्रों में भी होगी, कृषि मंत्री ने किसानों को दिया आश्वासन

खरीफ फसलों की खेती अब जलभराव वाले क्षेत्रों में भी होगी, कृषि मंत्री ने किसानों को दिया आश्वासन हरियाणा के ज्यादातर गांव में जलभराव के कारण किसान फसल की पैदावार नहीं कर पाते. ये दिक्कत अक्सर बारिश के मौसम में देखने को मिलती है. सरकार किसानों को खुशहाल करने के लिए खास इसी योजना पर काम कर रही है. सरकार चाहती है कि बारिश के कारण किसानों को दिक्कत न हो जिस वजह से ऐसे क्षेत्रों को पहले कृषि योज्य बनाया जाएगा फिर किसान वहा पर खरीफ फसलों की पैदावार कर पाएंगे. इस संबंध में जेपी दलाल जो की हरियाणा के कृषि एवं पशुपालन मंत्री है उन्होंने ने कहा कि,"प्रदेश में जलभराव से प्रभावित भूमि को कृषि योग्य बना कर किसानों को खुशहाल किया जाएगा". जिसके लिए जलभराव वाले क्षेत्रों में सौर ऊर्जा की मदद से जल निकासी प्रणाली योजना के आधार पर पानी निकालकर पास के किसी नाले में डाला जाएगा.

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जलभराव से 10 लाख हेक्टेयर भूमि प्रभावित हरियाणा सरकार की कोशिश है की हर एक क्षेत्र जिसमे की जलभराव के कारण किसान खेती करने में असमर्थ रहे है उन सभी क्षेत्रों में सौर ऊर्जा जल निकास प्रणाली योजना के द्वारा उन्हें खेती लायक बनाया जाएगा. घुसकानी में करीब 1 करोड़ 10 लाख की लागत से बने हुए सौर ऊर्जा जल निकासी प्रणाली योजना का शुभांरभ करने के लिए कृषि एवं पशुपालन मंत्री आए थे. उन्होंने कहा है कि प्रथम चरण में 1 लाख जलभराव की जमीन को सुधारने का लक्ष्य रखा गया है, जिसकी शुरुआत गांव घुसखानी से की गई है. करीब 10 लाख हेक्टेयर भूमि जलभराव होती है.जिसके लिए पाइप लाइन डालकर पंप सेटअप लगाकर सारा पानी नालों में बहा दिया जाएगा. जिसके बाद किसान उन खेतो में खेती कर पाएंगे. कृषि मंत्री जेपी दलाल ने कहा कि,"हम कुछ समय में इस समस्या से निजात पा लेंगे".
बारिश के चलते बुंदेलखंड में एक महीने लेट हो गई खरीफ की फसलों की बुवाई

बारिश के चलते बुंदेलखंड में एक महीने लेट हो गई खरीफ की फसलों की बुवाई

झांसी। बुंदेलखंड के किसानों की समस्या कम होने की बजाय लगातार बढ़ती जा रहीं हैं। पहले कम बारिश के कारण बुवाई नहीं हो सकी, अब बारिश बंद न होने के चलते बुवाई लेट हो रहीं हैं। इस तरह बुंदेलखंड के किसानों के सामने बड़ी परेशानी खड़ी हो गई है। मौसम खुलने के 5-6 दिन बाद ही मूंग, अरहर, तिल, बाजरा और ज्वर जैसी फसलों की बुवाई शुरू होगी। लेकिन बुंदेलखंड में इन दिनों रोजाना बारिश हो रही है, जिससे बुवाई काफी पिछड़ रही है।

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बारिश से किसानों पर पड़ रही है दोहरी मार

- 15 जुलाई को क्षेत्र के कई हिस्सों में करीब 100 एमएम बारिश हुई, जिससे किसानों ने थोड़ी राहत की सांस ली और किसान खेतों में बुवाई की तैयारियों में जुट गए। लेकिन रोजाना बारिश होने के चलते खेतों में अत्यधिक नमी बन गई है, जिसके कारण खेतों को बुवाई के लिए तैयार होने में वक्त लगेगा। वहीं शुरुआत में कम बारिश के कारण बुवाई शुरू नहीं हुई थी। इस तरह किसानों को इस बार दोहरी मार झेलनी पड़ रही है।

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नमी कम होने पर ही खेत मे डालें बीज

- खेत में फसल बोने के लिए जमीन में कुछ हल्का ताव जरूरी है। लेकिन यहां रोजाना हो रही बारिश से खेतों में लगातार नमी बढ़ रही है। नमी युक्त खेत में बीज डालने पर वह बीज अंकुरित नहीं होगा, बल्कि खेत में ही सड़ जाएगा। इसमें अंकुरित होने की क्षमता कम होगी। बारिश रुकने के बाद खेत में नमी कम होने पर ही किसान बुवाई कर पाएंगे।

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रबी की फसल में हो सकती है देरी

- खरीफ की फसलों की बुवाई लेट होने का असर रबी की फसलों पर भी पड़ता दिखाई दे रहा है। जब खरीफ की फसलें लेट होंगी, तो जाहिर सी बात है कि आगामी रबी की फसल में भी देरी हो सकती है।
MSP पर छत्तीसगढ़ में मूंग, अरहर, उड़द खरीदेगी सरकार

MSP पर छत्तीसगढ़ में मूंग, अरहर, उड़द खरीदेगी सरकार

फसल विविधीकरण को बढ़ावा देना लक्ष्य

छत्तीसगढ़ प्रदेश सरकार ने
मूंग, अरहर और उड़द की उपज की समर्थन मूल्य पर खरीद करने की घोषणा की है। खरीद प्रक्रिया क्या होगी, किस दिन से खरीद चालू होगी, किसान को इसके लिए क्या करना होगा, सभी सवालों के जानिए जवाब मेरीखेती पर। छत्तीसगढ़ सरकार ने प्रदेश में कृषकों के मध्य फसल विविधता (Crop Diversification) को बढ़ाना देने के लिए यह फैसला किया है। इसके तहत छत्तीसगढ़ प्रदेश सरकार ने दाल के न्यूनतम समर्थन मूल्य व्यवस्था में बदलाव किया है।

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अधिक मूल्य दिया जाएगा -

सरकार के निर्णय के अनुसार अब दलहन पैदा करने वाले किसानों को दाल का न्यूनतम समर्थन मूल्य अधिक दिया जाएगा। ऐसा करने से प्रदेश में अधिक से अधिक किसान दलहनी फसलों की खेती के लिए प्रोत्साहित होंगे।

दलहनी फसलों को प्रोत्साहन -

छत्तीसगढ़ प्रदेश राज्य सरकार ने छग में दलहनी फसलों की खेती के लिए किसानों को प्रोत्साहित करने के लिए मूंग, अरहर, उड़द की उपज के लिए समर्थन मूल्य की घोषणा की है।

फसल विविधीकरण (Crop Diversification) -

मूंग, अरहर, उड़द जैसी पारंपरिक दलहनी फसलों को समर्थन मूल्य प्रदान करने का राज्य सरकार का मकसद फसल विविधीकरण को बढ़ावा देना भी है।

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फसल विविधीकरण के लिए राज्य सरकार ने मूंग, उड़द और अरहर को एमएसपी की दरों पर खरीदने की घोषणा की है।

इतनी मंडियों में खरीद -

ताजा सरकारी निर्णय के बाद छत्तीसगढ़ प्रदेश की 25 मंडियों में अब न्यूनतम समर्थन मूल्य के आधार पर दाल की खरीदारी की जाएगी। मंडिंयों का चयन करते समय इस बात का ख्याल रखा गया है कि, अधिक से अधिक किसान प्रदेश सरकार की योजना से लाभान्वित हों। मंडियां नजदीक होने से दलहनी फसलों की खेती करने वाले किसानों को मौके पर लाभ मिलेगा और उनकी कमाई बढ़ेगी।

खरीफ खरीद वर्ष 2022-23 -

राज्य सरकार के फैसले के तहत अब छत्तीसगढ़ प्रदेश में मौजूदा खरीफ फसल (Kharif Crops) खरीद वर्ष 2022-23 में अरहर, मूंग और उड़द की खरीद एमएसपी पर की जाएगी। सरकारी सोसायटी को हरा मूंग बेचने वाले किसानों को प्रति क्विंटल 7755 रुपए मिलेंगे। राज्य सरकार द्वारा संचालित नोडल एजेंसी छत्तीसगढ़ राज्य सहकारी विवणन संघ (मार्कफेड) द्वारा राज्य में न्यूनतम समर्थन मूल्य पर दाल की खरीदारी की जाएगी।

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दलहनी फसलों का रकबा बढ़ाना लक्ष्य -

छत्तीसगढ़ के कृषि मंत्री रविंद्र चौबे ने राज्य में दलहन फसलों का रकबा बढ़ाने का आह्वान किया। उन्होंने कृषि विभाग को किसानों को दलहन की पैदावार करने के लिए जी तोड़ मेहनत करने के लिए भी प्रेरित किया। उन्होंने छत्तीसगढ़ राज्य के किसानों को दलहनी फसलों की खेती के लिए प्रोत्साहित करने के लिए और फसल विविधीकरण को बढ़ावा देने हेतु दाल को एमएसपी के दायरे में लाने की सरकारी मंशा की जानकारी दी।

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मीडिया को उन्होंने बताया कि, 2022-23 के खरीफ फसल प्लान के अनुसार दलहनी फसलों का रकबा बढ़ा है। उन्होेंने दलहनी फसलों के रकबे में 22 फीसदी की बढ़ोतरी होने की जानकारी दी।

उत्पादन का लक्ष्य बढ़ा -

राज्य सरकार ने इस साल प्रदेश में दो लाख टन से अधिक (232,000) दाल उत्पादन का लक्ष्य रखा है। यह लक्ष्य पिछले खरीफ सीजन के संशोधित अनुमान से लगभग 67.51 फीसदी अधिक है।

पिछली खरीद के आंकड़े -

छत्तीसगढ़ राज्य सरकार ने खरीफ सीजन 2021-22 में राज्य के दलहन उत्पादक किसानों से 139,040 टन दाल की खरीद की थी। पिछले साल के 501 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की तुलना में इस बार 520 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर दाल उत्पादन का लक्ष्य प्रदेश में रखा गया है।

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अहम होंगी ये तारीख -

प्रवक्ता सूत्र आधारित मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक राज्य सरकार ने इस साल एमएसपी पर दाल की खरीद के लिए सभी संभागीय आयुक्त, कलेक्टर, मार्कफेड रीजनल ऑफिस और मंडी बोर्ड को विस्तृत दिशा-निर्देश दिए हैं। किसानों के लिए एमएसपी पर उड़द, मूंग और अरहर बेचने की तारीख जारी कर दी गई है। इसके मुताबिक किसान 17 अक्टूबर 2022 से लेकर 16 दिसंबर 2022 तक उड़द और मूंग की उपज एमएसपी पर बेच पाएंगे। अरहर की खरीद 13 मार्च 2023 से लेकर 12 मई 2023 तक की जाएगी।
भारत से टूटे चावल भारी मात्रा में खरीद रहा चीन, ये है वजह

भारत से टूटे चावल भारी मात्रा में खरीद रहा चीन, ये है वजह

भारत सरकार इस साल चावल के निर्यात पर आंशिक प्रतिबंध लगा सकती है, आइए जानते है क्यों? हाल ही मे ग्लोबल फूड मार्केट मे खाद्य सामग्री की कमी आई है और इसका ज्यादा असर चावल की सप्लाई पर हुआ है। खाद्य सामग्री मे आई इस कमी का प्रमुख कारण रूस -यूक्रेन युद्ध है, इस युद्ध की वजह से खाद्य सामग्री, ग्लोबली जिस स्तर पर पहुंचनी चाहिए थी, उस स्तर पर उपलब्ध नही हो पा रही है। इसका काफी बड़ा प्रभाव चीन फूड मार्केट पर पड़ा है।


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चीन वो देश है जहां चावल की सालाना खपत 16 करोड़ टन है, लेकिन चीन मे कुल चावल का उत्पादन करीब 14 करोड़ टन होता है। मांग और उत्पादन के बीच के इस गैप को भरने के लिए चीन बाकी का चावल विदेशों से आयात करता है। अब इस बार खरीफ की फसल पर मौसम का विपरीत प्रभाव पड़ने के कारण इसका उत्पादन कम हो पाया है।


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साथ ही साथ चीन में चावलों का अधिक मात्रा में उपयोग वाइन और नूडल्स बनाने मे होता है। इसके साथ ही चीन मे टूटे चावल खाने का ट्रेंड भी है, जिस वजह से वहां चावल की खपत ज्यादा होती है। यही कारण है कि इस बार चीन, भारत से चावल आयात करने वाले देशों के बीच मे एक प्रमुख खरीदार के रूप मे उभर कर सामने आया है। वैसे चीन भारत से हर साल चावल नहीं खरीदता, लेकिन ग्लोबल मार्केट में चावल की उपलब्धता कम होने की वजह से मजबूरी में चीन को भारत से चावल खरीदने पड़ रहे हैं। अक्सर ग्लोबल मार्केट में टूटे चावल की बिक्री कम होती है, लेकिन जब खाने की कमी हो तो टूटे चावल भी बिक जाते हैं। ऐसा ही कुछ इस बार हुआ है और चीन ने भारी मात्रा में भारत से टूटे चावल खरीदे हैं। अब चूंकि खाद्य सामग्री की कमी वैश्विक स्तर पर आई हुई है। इसलिए इस बात को ध्यान मे रखते हुए और हाल के दिनों में घरेलू सप्लाई मे आई कुछ कमी को देखते हुए भारत सरकार चावल एक्सपोर्ट पर कुछ प्रतिबंध लगा सकती है। गौर करने वाली बात है कि भारत दुनिया का 40 फीसदी चावल का एक्सपोर्ट करता है। ऐसे में अगर चावल के एक्सपोर्ट पर बैन लग गया तो दुनिया में हड़कंप मच सकता है।
धान की एमएसपी में वृद्धि से किसानों को होगा काफी फायदा

धान की एमएसपी में वृद्धि से किसानों को होगा काफी फायदा

केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में मार्केटिंग सीजन 2023-23 के लिए खरीफ की फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य अधिक करने का निर्णय किया गया है। केंद्रीय मंत्री जी. किशन रेड्डी का कहना है, कि इस निर्णय का सबसे ज्यादा लाभ तेलंगाना के किसानों को होगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में बुधवार को कैबिनेट की बैठक हुई। इसके चलते आर्थिक मामलों की कैबिनेट कमेटी ने 2023-24 मार्केटिंग सीजन हेतु खरीफ की फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) इजाफा करने पर मुहर लगा दी है। इस पर केंद्रीय मंत्री जी. किशन रेड्डी का कहना है, कि सरकार के इस निर्णय से तेलंगाना के धान से लेकर मक्का, सूरजमुखी एवं कॉटन किसानों को काफी लाभ होगा।

तेलंगाना भारत का दूसरा सर्वोच्च धान उत्पादक राज्य है

तेलंगाना से आने वाले केंद्रीय पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री जी. किशन रेड्डी ने बताया केंद्र सरकार साल 2014 से निरंतर एमएसपी में वृद्धि कर रही है। तेलंगाना भारत का दूसरा सबसे बड़ा धान उत्पादक राज्य है। अब धान के एमएसपी में बढ़वार होने का फायदा यहां के किसान भाइयों को मिलेगा। राज्य में उत्पादित की जाने वाली प्रमुख फसलों की एमएसपी में 2014 से 2023 के मध्य 60 से 80 फीसद तक की वृद्धि हुई है।

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इन फसलों के उत्पादकों को काफी लाभ है

जी. किशन रेड्डी ने बताया है, कि प्रदेश में मक्का, धान, सूरजमुखी और कपास की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है। बतादें, कि साल 2014 से अब तक सूरजमुखी के बीजों की एमएसपी में सर्वाधिक 80 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई है। साथ ही, कपास किसानों को लाभ पहुंचाने एवं तेलंगाना के हैंडलूम एवं टेक्सटाइल क्षेत्र को प्रोत्साहन देने में भी एमएसपी बढ़ाने का योगदान है। कपास की एमएसपी 2014 से अब तक 75 प्रतिशत तक बढ़ गई है। अन्नदाता मतलब कि कृषकों की आमदनी भी 2014 के पश्चात से बढ़ी है। तेलंगाना धान का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है। साथ ही, मक्का का भी काफी उत्पादन करता है। इन दोनों फसलों की एमएसएपी में 60 प्रतिशत तक की वृद्धि हुई है।

इन फसलों की एमएसपी कितनी है

तेलंगाना में उत्पादित होने वाली प्रमुख फसलों में धान-सादा की एमएसपी 2014 में 1360 रुपये प्रति क्विंटल थी। वर्तमान में यह 61 प्रतिशत बढ़कर 2183 क्विंटल पर पहुँच गई है। साथ ही, धान-ग्रेड ए पूर्व में 1400 रुपये क्विंटल था, जो कि फिलहाल 2203 रुपये प्रति क्विंटल हो गई है। मतलब कि 57 प्रतिशत का इजाफा।

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इसी प्रकार मक्का की दर 1310 रुपये से 60 प्रतिशत बढ़कर 2090 रुपये क्विंटल, सनफ्लावर सीड की 3750 रुपये से 80 प्रतिशत बढ़कर 6760 रुपये क्विंटल, कॉटन (मीडियम स्टेपल) की 3750 रुपये से 77 प्रतिशत बढ़कर 6620 रुपये क्विंटल और कॉटन (लॉन्ग स्टेपल) की 4050 रुपये से 73 प्रतिशत बढ़कर 7020 रुपये प्रति क्विंटल हो गई है।

किसानों को कितना लाभ मिलेगा

केंद्र सरकार का यह निर्णय आम बजट 2018-19 की उस घोषणा के अनुरूप है, जिसमें एमएसपी को फसलों की औसत लागत पर 50 प्रतिशत अधिक के समतुल्य करना था। तेलंगाना में उत्पादित होने वाली फसलों के साथ भी कुछ ऐसा हुआ है। प्रदेश में धान-सादा का औसत खर्चा 1455 रुपये क्विंटल है। वहीं, एमएसपी 50 प्रतिशत ज्यादा 2183 रुपये है। उधर मक्का की लागत 1394 रुपये है और एमएसपी 2090 रुपये क्विंटल, सनफ्लावर सीड की लागत 4505 रुपये है एवं एमएसपी 6760 रुपये एवं कॉटन (मीडियम स्टेपल) की लागत 4411 रुपये और एमएसपी 6620 रुपये क्विंटल है।
खरीफ सीजन क्या होता है, इसकी प्रमुख फसलें कौन-कौन सी होती हैं

खरीफ सीजन क्या होता है, इसकी प्रमुख फसलें कौन-कौन सी होती हैं

आज हम आपको खरीफ फसल से जुड़ी कुछ अहम बात बताने जा रहे हैं। इस लेख में जानेंगे कि खरीफ की फसल कौन कौन सी होती हैं और इन फसलों की बुवाई कब की जाती है। 

भारत में मौसम के आधार पर फसलों की बुवाई की जाती है। इन मौसमों को तीन भागों में वर्गीकृत किया गया है। खरीफ फसल, रबी फसल एवं जायद फसल। लेकिन आज हम खरीफ की फसल के बारे में आपको बताने वाले हैं। 

अगर हम खरीफ की फसलों के विषय में बात करें तो प्रमुखतः खरीफ की फसलों की बुवाई का समय जून - जुलाई होता है। जो कि अक्टूबर माह में पककर तैयार हो जाती हैं। 

बतादें कि अधिक तापमान व आर्द्रता का होना खरीफ फसलों के लिए अत्यंत आवश्यक होता है। वहीं जब खरीफ फसलों का पकने का समय आता है। तब शुष्क वातावरण का होना आवश्यक होता है। 

एक तरह से खरीफ फसलों को मानसूनी फसल भी कहा जाता है। खरीफ शब्द का इतिहास देखें तो यह एक अरबी शब्द है, जिसका अर्थ पतझड़ होता है। वर्षाकाल में इसकी बुवाई की जाती है। 

लेकिन कटाई के दौरान पतझड़ का समय आ जाता है। खरीफ फसलों को उच्च आद्रता और तापमान की जरुरत होती है। जानकारी के लिए बतादें कि एशिया के अंदर भारत, बांग्लादेश एवं पाकिस्तान में खरीफ की फसलों की बुवाई की जाती है। 

खरीफ फसलों की बुवाई जून-जुलाई में होती है। लेकिन भिन्न भिन्न स्थानों पर मानसून आने का वक्त और वर्षा में अंतराल होने की वजह से बिजाई के दौरान भी फासला देखा जाता है।

खरीफ की कुछ प्रमुख फसलें

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि धान, मक्का, बाजरा, जौ, ज्वार, कोदो, मूंगफली, सोयाबीन, तिल, अंडी (अरंण्ड), अरहर, मूंग, उड़द, गन्ना, सेब, बादाम, खजूर, अखरोट, खुबानी, पूलम, आडू, संतरा, अमरुद, लीची, बैगन, लीची, टिंडा, टमाटर, बीन, लोकी, करेला, तोरई, सेम, खीर, ककड़ी, कद्दू, तरबूज, लोबिया, कपास और ग्वार आदि खरीफ की कुछ प्रमुख फसलें हैं।

चावल

चावल एक तरह की उष्णकटबंधीय फसल है, चावल की फसल जलवायु में नमी एवं वर्षा पर निर्भर रहती है। भारत विश्व में दुसरे नंबर का चावल उत्पादक देश है। 

चावल की खेती के आरंभिक दिनों में सिंचाई हेतु 10 से 12 सेंटीमीटर गहरे जल की आवश्यकता पड़ती है। चावल की साली, अमन, अफगानी, बोरो, पलुआ और आस जैसी विभिन्न प्रजतियाँ होती हैं। 

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धान की खेती हेतु तकरीबन 24 % फीसद तापमान व 150 सेंटीमीटर की जरुरत पड़ती है। विशेष तौर पर भारत के हरियाणा, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, उड़ीसा, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और पंजाब में चावल का उत्पादन किया जाता है।

कपास

कपास एक उष्णकटबंधीय एवं उपोष्णकटिबंधीय फसल में आती है। भारत कपास उत्पादन के मामले में विश्व में तीसरे स्थान पर आता है। कपास एक शुष्क फसल है। परंतु, जड़ों को पकने के दौरान जल की आवश्यकता पड़ती है। 

शाॅर्ट स्टेपल, लाॅन्ग‌ स्टेपल, मीडियम स्टेपल आदि कपास की कुछ किस्में हैं। कपास की खेती के लिए 21-30°C तापमान की जरूरत पड़ती है। कपास की फसल में 50 से 100 सेंटीमीटर वर्षा की जरूरत होती है। 

काली मृदा में कपास की खेती काफी अच्छी होती है, जिससे उत्पादन अच्छा-खासा मिलता है। भारत के राजस्थान, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, तमिल नाडु, गुजरात, महाराष्ट्र, उड़ीसा में कपास का उत्पादन किया जाता है।

मूंगफली

भारत में मूंगफली की खेती मुख्यतः कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तमिल नाडु, गुजरात में की जाती है। मूंगफली की बुवाई ज्यादातर मानसून के आरम्भ में की जाती है। 

मूंगफली की बुवाई 15 जून से लेकर 15 जुलाई के बीच की जाती है। मूंगफली की बुवाई के लिए भुरभुरी दोमट एवं बलुई दोमट मृदा उपयुक्त होती है। साथ ही, भूमि में समुचित जल निकासी की व्यवस्था होनी चाहिए।

लौकी

लौकी की यानी की घीया शारीरिक स्वास्थ्य के लिए काफी अच्छी मानी जाती है। लौकी के अंदर पोटेशियम, मैग्नीशियम, आयरन, विटामिन बी और विटामिन सी पाए जाते हैं। 

इसके अतिरिक्त लौकी विभिन्न गंभीर रोगों जैसे कि वजन कम करने, मधुमेह, कोलेस्ट्रॉल और पाचन क्रिया में भी इस्तेमाल किया जाता है। लौकी की खेती ग्रीष्म एवं आर्द्र जलवायु में होती है। 

लौकी का सर्वाधिक उत्पादन उत्तर प्रदेश, बिहार और हरियाणा में किया जाता है। बलुई मृदा एवं चिकनी मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती है। 

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टमाटर

जब हम सब्जी की बात करें तो टमाटर का नाम ना आए ऐसा हो ही नहीं सकता। विटामिन एवं पोटेशियम के साथ-साथ टमाटर के अंदर विभिन्न प्रकार के खनिज तत्व विघमान रहते हैं। 

जो कि सेहत के लिए काफी लाभकारी साबित होते हैं। भारत के उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, उड़ीसा, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, राजस्थान, बिहार और कर्नाटक आदि राज्यों में टमाटर का बड़े पैमाने पर उत्पादन किया जाता है। 

टमाटर की किस्मों की बात की जाए तो इसकी अरका विकास, अर्का सौरव, सोनाली, पूसा शीतल, पूसा 120, पूसा रूबी एवं पूसा गौरव आदि विभिन्न देशी उन्नत किस्में उपलब्ध हैं। 

इसके अतिरिक्त पूसा हाइब्रिड-3, रश्मि, अविनाश-2, पूसा हाइब्रिड-1 एवं पूसा हाइब्रिड-2 इत्यादि हाइब्रिड किस्में उपलब्ध हैं।

लीची

लीची एक अच्छी गुणवत्ता वाला रसीला फल होता है। लीची का सेवन करने से अच्छा पाचन तंत्र और बेहतर रक्तचाप जैसे कई सारे शारीरिक लाभ होते हैं। लीची की सबसे पहले शुरुआत या खोज दक्षिणी चीन से हुई थी। 

भारत विश्व में लीची उत्पादन के मामले में दूसरे स्थान पर आता है। भारत के जम्मू कश्मीर, मध्य प्रदेश एवं उत्तर प्रदेश को देखी-देखा अब बिहार, पंजाब, पश्चिम बंगाल, असम, त्रिपुरा, उत्तराखंड, झारखण्ड, छत्तीसगढ़ और उड़ीसा में भी लीची की खेती होने लगी है।

भिंड़ी

भिंड़ी विभिन्न प्रकार की सब्जियों में अपना अलग पहचान रखती है। काफी बड़ी संख्या में लोग इसको बहुत पसंद करते हैं। भिंडी के अंदर कैल्शियम, विटामिन ए, विटामिन बी, फास्फोरस जैसे कई तरह के पोषक तत्व भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं। 

भिंड़ी का सेवन करने से लोगों के पेट से संबंधित छोटे-छोटे रोग बिल्कुल समाप्त हो जाते हैं। भिंड़ी की खेती के लिए बलुई दोमट मृदा सबसे उपयुक्त मानी जाती है। 

भिंडी की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु की बात की जाए तो इसकी खेती के लिए अधिक गर्मी एवं अधिक ठंड दोनों ही खतरनाक साबित होती हैं। 

यदि हम भिंड़ी की किस्मों की बात करें तो पूसा ए, परभनी क्रांति, अर्का अनामिका, वीआरओ 6 और हिसार उन्नत इत्यादि हैं।

जानें रबी और खरीफ सीजन में कटाई के आधार पर क्या अंतर है

जानें रबी और खरीफ सीजन में कटाई के आधार पर क्या अंतर है

रबी की फसल सर्द‍ियों के सीजन में अक्टूबर से दिसंबर के बीच लगाई जाती है। रबी की फसलों में गेंहू, आलू, मटर, चना, अलसी, सरसो एवं जौं प्रमुख तौर पर शाम‍िल हैं। खरीफ की फसलों में सोयाबीन, कपास, चावल, ज्वार, बाजरा, मक्का, मूंग, मूंगफली और गन्ना समेत अन्य शामिल हैं। भारत में अनेक फसलों का उत्पादन होता है। यहां की ज्यादातर आबादी कृषि क्षेत्र से ही जुड़ी हुई है। इस वजह से ही भारत को कृषि प्रधान देश कहा जाता है। भारत में ऋतुओं पर आधारित रबी एवं खरीफ फसलें दो तरह की फसलें हैं। प्रत्येक फसल के उत्पादन का एक खास मौसम होता है। इस लेख के अंदर हम आपको रबी और खरीफ की फसल में अंतराल बता रहे हैं।

रबी की फसल

रबी की फसल सर्द‍ियों के मौसम में अक्टूबर से दिसंबर तक बोई जाती है। रबी की फसलों में चना, अलसी, सरसो, जौं, गेंहू, आलू और मटर विशेष रूप से शम्मिलित हैं। इस मौसम में गेंहू की सबसे ज्यादा खेती की जाती है। अक्टूबर-नवंबर के महीने में इस फसल के बीजों की बिजाई के लिए मिट्टी में डाल दिया जाता है। इन फसलों को कम तापमान के साथ खुश्क वातावरण की जरूरत पड़ती है। मानसून समाप्त होने के उपरांत मिट्टी में पानी की भरपूर मात्रा होती है। ऐसी स्थिति में पूरी सर्दियों में इस फसल को पैदा करने के लिए अच्छी मात्रा में पानी उपलब्ध रहता है। हालांकि, नवंबर और दिसंबर में होने वाली वर्षा से इस फसल को बेहद क्षति पहुंचती है। ये भी पढ़े: रबी सीजन की फसलों की बुवाई से पहले जान लें ये बात, नहीं तो पछताओगे

रबी की फसल की कटाई कब की जाती है

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि रबी की फसल की कटाई फरवरी माह के आखिरी सप्ताह से लेकर मार्च के आखिरी सप्ताह तक की जाती है। दरअसल, इस मौसम में परिवर्तन होना प्रारंभ हो जाता है। साथ ही, तापमान में भी बढ़ोत्तरी होने लगती है। फसल की कटाई के पश्चात इसको बेहतर ढ़ंग से सुखाया जाता है। उसके उपरांत इस फसल की हाथ से मड़ाई की जाती है।

खरीफ फसल की कटाई कब की जाती है

खरीफ की फसलों में मूंग, मूंगफली, गन्ना, सोयाबीन, कपास, चावल, ज्वार, बाजरा और मक्का समेत अन्य शम्मिलित हैं। इन फसलों को ज्यादा तापमान के साथ आद्रता और शुष्क वातावरण की जरूरत होती है। इन फसलों को जून-जुलाई में बोया जाता है। खरीफ की फसल अक्टूबर माह तक पककर तैयार हो जाती है। सर्द‍ियां आरंभ होने से पहले अक्‍टूबर तक इन फसलों की कटाई चालू हो जाती है।